पढ़-लिख लिही त राज करही नोनी।
नइते जिनगी भर लाज मरही नोनी॥
पढ़ही त बढ़ही आत्म विसवास ओकर
दुनिया मा सब्बो काम काज करही नोनी।
जिनगी म जब कोनो बिपत आ जाही,
लड़े के उदीम करही, बाज बनही नोनी।
पढ़ही तभे जानही अपन हक-करतब ल,
सुजान बनही, सुग्घर समाज गढ़ही ोनी।
परवार, समाज अउ देस के सेवा करही,
जिनगी ल सुफल करे के परियास करही नोनी।
गणेश यदु
संबलपुर कांकेर